स्वराज कि दरकार !

स्वतंत्रता दिवस मे जब राष्ट्र स्वयं की स्वतंत्रता कि द्वारख़ास्त लगा रखा हो और 135 करोड़ देशवासी स्वतंत्रता के जश्न में गुमान हो, तो स्वतंत्रता शब्द् की खुद कि स्वतंत्रता अपरिहार्य हो जाती है। 

हम जश्न मना रहे हैं 15 अगस्त 1947 के सत्ता हस्तांतरण का जब ब्रिटिश हुकूमत ने देश की बागडोर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौपी थी और जश्न मे हम भूल गए थे की ब्रिटिश हुकूमत ने 14 अगस्त को भारतवर्ष के दो टुकड़े किए और पहला टुकड़ा पहले मोहम्मद अली जिन्ना के हाथों में सौंपते हुए बोला कि लो अपना पाकिस्तान, फलो फूलो और ऐश करो और दूसरा टुकड़ा पंडित नेहरू को सौंपते हुए बोला कि लो इंडिया खुद के लिए खुद से संघर्ष करो और वह संघर्ष हम आज भी कर रहे हैं।

 हम आजादी के जश्न में यूं गुमान है की हमें ज़ैसे हमारी स्वतंत्रता मिल गई, पर भूल गए की भारतवर्ष अब इंडिया और पाकिस्तान दो मुल्क जो एक सभ्यता, एक संस्कृत कि धरोहर हैं, परंतु विभाजन में हिंदू - मुस्लिम में बटा और धर्म के आड़ पर कत्लेआम हुए। भारतवर्ष खुद के विभाजन को आज भी मूकदर्शक की तरह ताकता है और उसकी हम क्यो सुने, हम स्वतंत्रता के नशे में जो गुमान हैं और देश कि आजादी का पर्व जो हर वर्ष मनाते हैं। मुझे क्या मैं तो वकील हूं; समाज में सबसे अछूता। मेरी कोई क्यों सुने जब आजादी के मतवालों का झुंड उमड़ा हो।‌ न जाने कब ह्रदय पीड़ा खत्म होगी जब हमे स्वतंत्र देश में खुद की स्वतंत्रता का एहसास होगा। आप खुश हो क्योंकि आपके नजरों में स्वतंत्रता एक जश्न है पर मुझे तो स्वतंत्रा एक जमीनी हकीकत जिसके कई मायने होते हैं। जब भी मैं स्वतंत्रता की बात करता हूं तो सह अस्तित्व के साथ उसे जोड़ता हूं। आज फिर स्वतंत्रता का जश्न है लाल किले में तिरंगा लहरा रहा‌ और उस तिरंगे में मैं राष्ट्र ढूंढ रहा हूं, स्वराज ढूंढ रहा हूं।

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