जब समाज ही लचर है !

जब समाज  ही लचर है !

"महिला शस्त्रीकरण" और "महिला सुरक्षा", दो विरोधाभाषी तथ्य, जो की आधुनिक भारत में सबसे ज्यादा प्रयोग किए जाने वाले वाक्यांश हैं। उदारीकरण और खुला बाज़ार के इस दौर में, देश के हमारे तथाकथित राजनेता और अर्थशास्त्री, भारत को २१वीं सदी में विश्व का उन्नत राष्ट्र, जो कि विश्व राजनीत की दशा और दिशा तय करेगा के स्वप्न दिखा रहें है तथा ऐसा दावा कर रहें। और दूसरी तरफ हमारे तथाकथित समाजशास्त्री, राजनैतिक विश्लेषक व हिंदुत्व के प्रवर्तक - विश्व पटल में, भारत को विश्वगुरु बनने का दावा पेश कर रहें हैं। इन सब दाओं और प्रतिदावों के बीच मैं इक पल मुकदर्शक क्या बना, की देश के तथाकथित पंडा खुद  को देश का तारण हार बताने लगे। मै अकेले मूकदर्शक नहीं बना, आप भी तो खामोश हैं ! आखिर हम सब क्यों न मूकदर्शक बने, हमे भी तो इन तथाकथित सामाजिक ठेकेदारों द्वारा कही गई बातों से  दिल को सुकून मिलता हैं। आखिर हमें भी तो स्वप्न लोक में जीने की आदत है और खुली आंखों से  दिन में हम सब मुंगेरीलाल के हसीन सपने जो देखते हैं। सटीक शब्दों में कहें तो हम सब इन सामाजिक  पंडो के  "जजमान"  है,  जो की लगातार "दक्षिणा"  देकर  उनके मनोबल को बढ़ा रखें हैं । परन्तु अब पानी मेरे सिर के ऊपर से गुजरने लगा है, और मै बहुत अच्छा तैराक नहीं हूं। जिससे मुझे डूबने व पानी की तेज धारा में बहने से बचने के लिए जमीन पकड़नी पड़ रही है। परन्तु यह बात सब पे लागू नहीं होती। हो सकता है कि बाकी लोग बहुत ही बढ़िया तैराक हों। यकीन मानिए आप पर तो यह बात बिल्कुल भी लागू नहीं होती, क्यों की आप सब पंडो के समाज में रहने के जो आदी हो गए हैं। 

                 यह सब बातें मेरे दिलों दिमाग को परेशान कर रहीं हैं जब इक तरफ सारा देश महिला शसक्तीकरण कि बात कर रहा है और दूसरी तरफ महिला सुरक्षा को लेकर घोर चिंतित है। यह सब सुनकर मैं हैरान व आश्चर्य चकित हूं, क्यों  की भारत इक तरफ राष्ट्र के तौर पर खुद को प्रस्तुत कर रहा है वहीं पर अपनी बहन -  बेटियों के साथ हो रहे योनिसोषण, दरिंदगी, बलात्कार, हत्या - आत्महत्या  जैसे घिनौने कृत्य से सुरक्षा देने में पूर्णतः असफल  हो रहा है। आखिर भारत इक राष्ट्र के तौर पर खुद के नागरिकों को सुरक्षा क्यों प्रदान नहीं कर पा रहा है, खास तौर से "स्त्री वर्ग" को, यह इक सामाजिक चिंतन का विषय है और इसके कारणों को जानना होगा। विषम परिस्थितियों में राष्ट्र को उचित मार्ग दर्शन देना समाज का कार्य है जिसकी बुनियाद में  समाज का हर प्राणी है। 
                 
                            वर्तमान में देश के अंदर दिनों दिन बड़ रहे बलात्कार व निर्मम हत्याओं के हम मूकदर्शक हैं, क्यों की हम ने स्त्रियों के साथ हो रहे जघन्य अपराधों की ज़िम्मेदारी देश के सरकार पर छोड़ दी। सरकार ने लाॅ एंड ऑर्डर को मेंटेन रखने की जिम्मेदारी पुलिस पर और पुलिस ने अपराधियों को सजा देने की जिम्मेदार न्यालय पर छोड़ दी। पीड़िता व उसका परिवार न्यायलय से  न्याय की उम्मीद के साथ जीवित है और उसके पास न्याय के इंतजार के अलावा कोई रास्ता नहीं।
                      
                          भारतीय  न्याय और न्यायिक व्यवस्था, मूलतः तीन कानूनी सहिंताओ पर निर्भर हैं, भारतीय दण्ड संहिता, भारतीय दण्ड प्रक्रिया व भारतीय साक्ष्य अधिनियम। किसी भी अपराध के कारित होने के बाद उसकी प्रथम सूचना पुलिस को दी जाती है। पुलिस भारतीय दण्ड प्रक्रिया में वर्णित  प्रक्रिया का पालन करते हुए घटना के दोषी अपराधी को, न्यायलयीन प्रक्रिया के अंतर्गत, अपराधिक दण्ड सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्य अधिनियम के अनुसार गवाह व मटेरियल एविडेंस  इकात्रित करता है तथा अपराधी के विरूद्ध आरोप पत्र तैयार करके न्यायालय के समुख रखता तथा अपराधी के द्वारा खुद को आरोपों से निर्दोष अभियक्त करने पर न्यायलय द्वारा ट्रायल चलता है। ट्रायल के दौरान अभियोजन के द्वारा गवाह व मटेरियल एविडेंस प्रस्तुत किए जाते है व बचाव पछ के वकील द्वारा गवांहों व मटेरियल एविडेंस को कानूनी कसौटी में कसा जाता है व अपराधी की निर्दोष बताना और अंततः  जज द्वारा अपराधी को दोषी व दंडित किया जाता है  या निर्दोष घोषित कर दिया जाता है। 

                            अभी आप सोच रहें है कि यह सब मै आप को क्यों बता रहा हूं। ह ह ह ------ ह! भाई साहब मै मूलतः क्रिमिनल लॉयर हूं और डिफेंस काउंसिल के तौर पर लंबा सफर तय किया है। और  यह सब बताने के पीछे मुख्य मुकदमा यह है कि पूरे कानूनी प्रक्रिया में वकील अभियोजन, वकील बचाव पछ, पुलिस और उसके दलाल, गवाह, जज  व उनके दलाल सामिल होते हैं। रही शाही कसर भारतीय कानून व्यवस्था और उसपे मुकदमों का बोझ तथा पर्याप्त आधारभूत द्धांचे का अभाव इस देश को अपराधियों के लिए जन्नत साबित होता है, क्यों की हम अविकसित, असभ्य और राष्ट्रीय चरित्रहीन हैं।
                
                    
                 बलात्कार फिर हत्या कि घटनाएं मेरे दिलों दिमाग को परेशान कर रहीं हैं क्यों कि निर्भया कांड के दर्दों को बहुत करीब से महसूस किया है। जब इक तरफ सारा देश महिला शसक्तीकरण कि बात कर रहा है और दूसरी तरफ महिला सुरक्षा को लेकर घोर चिंतित है। यह सब घटनाओं को सुनकर मैं हैरान व आश्चर्य चकित हूं, क्यों  की भारत इक तरफ राष्ट्र के तौर पर खुद को प्रस्तुत कर रहा है वहीं पर अपनी बहन -  बेटियों के साथ हो रहे योनिसोषण, दरिंदगी, बलात्कार, हत्या - आत्महत्या  जैसे घिनौने कृत्य से सुरक्षा देने में पूर्णतः असफल  हो रहा है। आखिर भारत इक राष्ट्र के तौर पर खुद के नागरिकों को सुरक्षा क्यों प्रदान नहीं कर पा रहा है, खास तौर से "स्त्री वर्ग" को, यह इक सामाजिक चिंतन का विषय है और इसके कारणों को जानना होगा। विषम परिस्थितियों में राष्ट्र को उचित मार्ग दर्शन देना समाज का कार्य है जिसकी बुनियाद में  समाज का हर प्राणी है। 
             
                         वर्तमान में देश के अंदर दिनों दिन बड़ रहे बलात्कार व निर्मम हत्याओं के हम मूकदर्शक हैं, क्यों की हम ने स्त्रियों के साथ हो रहे जघन्य अपराधों की ज़िम्मेदारी देश के सरकार पर छोड़ दी। सरकार ने लाॅ एंड ऑर्डर को मेंटेन रखने की जिम्मेदारी पुलिस पर और पुलिस ने अपराधियों को सजा देने की जिम्मेदार न्यालय पर छोड़ दी। पीड़िता व उसका परिवार न्यायलय से  न्याय की उम्मीद के साथ जीवित है और उसके पास न्याय के इंतजार के अलावा कोई रास्ता नहीं।
                      भारतीय  न्याय और न्यायिक व्यवस्था, मूलतः तीन कानूनी सहिंताओ पर निर्भर हैं, भारतीय दण्ड संहिता, भारतीय दण्ड प्रक्रिया व भारतीय साक्ष्य अधिनियम। किसी भी अपराध के कारित होने के बाद उसकी प्रथम सूचना पुलिस को दी जाती है। पुलिस भारतीय दण्ड  प्रक्रिया का पालन करते हुए घटना के दोषी अपराधी को न्यायलयीन प्रक्रिया के अंतर्गत, अपराधिक दण्ड सुनिश्चित करने के लिए साक्ष्य अधिनियम के अनुसार गवाह व मटेरियल एविडेंस  इकात्रित करती है तथा अपराधी के विरूद्ध आरोप पत्र तैयार करके न्यायालय के समुख रख ती है तथा अपराधी के द्वारा खुद को आरोपों से निर्दोष अभियक्त करने पर न्यायलय द्वारा ट्रायल चलाया जाता है। ट्रायल के दौरान अभियोजन के द्वारा गवाह व मटेरियल एविडेंस प्रस्तुत किया जाता है व बचाव पछ के वकील द्वारा गवांहों व मटेरियल एविडेंस को कानूनी कसौटी में कस कर  अपराधी की निर्दोष बताया जाता है और अंततः  जज द्वारा अपराधी को दोषी व दंडित किया जाय है या निर्दोष घोषित कर दिया जाता है। 

               अभी आप सोच रहें है कि यह सब मै आप को क्यों बता रहा हूं। 
            ह ह ह ------ ह! भाई साहब मै मूलतः क्रिमिनल लॉयर हूं और डिफेंस काउंसिल के तौर पर लंबा सफर तय किया है। सच मानिए कानून, गवाह, साक्ष्य,‌ पुलिस, वकील सब बिकतें है कुछ अपवादों को छोड़ कर। इसी कारण  देश के अंदर अपराध बड़ रहा है और कानून तथा दण्ड प्रभाव हीन हैं।  इससे क्या लेना देना आप हम सब का। मुख्य मुद्दा की ओर हमें अपना ध्यानकेंद्रित रखना है और समस्या के मूल जड़ तक पहुंचना होगा।
                     देश के वर्तमान परिवेश को समझने के लिए हमे अतीत में भी झकना होगा। साथ हीं साथ  प्राचीन "भारतवर्ष" से वर्तमान "इंडिया" तक के सफर को भी बहुत बारीकी से समझना होगा। पृथ्वी के प्रदुर्भव के बाद   एवं  पाषाण कालीन युग से, आज का भारतीय समाज  जो कि वैदिक काल के गलियारे से गुजरता हुआ आधुनिक काल में जा पहुंचा है वह भारतीय समाज आधुनिकता की दौड़ में, पाषाण कालीन मानव से कंही ज्यादा बर्बर व असभ्य हो गया है और आज का यक्ष प्रश्न यही है। 
                        दुनिया में राष्ट्र शब्द कि परकल्पना राष्ट्र निर्माण के बाद हुई और वह राष्ट्र भरातवर्ष था जिसके जनक व स्वत्व‌ तथा आधिपत्य धरी पृथ्वी के स्वयंभू सम्राट "भारत" थे। जिन्होंने ने अपने पराक्रम से राष्ट्र का निर्माण किया जो की बाह्य व आंतरिक आक्रमण से सुरक्षित व भय मुक्त था। जिसके कारण राष्ट्र में न्याय प्रिय सामाजिक व्यवस्था कायम हुई और समाज व सभ्यता के विकास का चरखा चला। उरांतर में मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम ने भी अश्वमेघ यज्ञ करा कर सारे राज्यों को अधीन करते हुए सम्राट बने और यह क्रम बाद में भी जारी रहा। भारतीय समाज हमेशा स्त्री प्रधान था और सारे ऎतिहासिस्क परिवर्तन इसके  गवाह है जिसके धुरी में हमारी मां थी और परिवार की धुरी भी हमारी मां थी। 
                                    मध्यकालीन भारत में लगातार विदेशी आक्रांताओं के हमले हुए जिससे भारतीय राज्य कमजोर व बिखरते गए। अंततः विष्णु गुप्त ने कूटनीति से भारतवर्ष को पुनर्जीवत किया व  चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया। परन्तु अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य कमजोर होता गया और राष्ट्र  पुनः कई राज्यों में विभाजित हो गया। कालांतर में मुस्लिम आक्रमणों से भारतीय राजा पराजित हुए । खास तौर से पृथ्वीराज चौहान की हार देश की अस्मिता को भारी पड़ी और वहीं से भारतीय नारी की मर्यादा और सुरक्षा खतरे में पड़ी। मुस्लिम समाज में औरत इक भोग की वस्तु थी और वह स्त्री को सम्पत्ति के रूप में देखता था। जिससे राजा के हारने के बाद मुस्लिम आक्रांता बद नियत से औरत को लूटता था और उसे अपने हरम में रख कर भोग विलास करता था जिसका परिणाम जौहर प्रथा, सती प्रथा, बालविवाह, पर्दा प्रथा आदि सामाजिक कुरीतियां आ गई। हिन्दू सभ्यता व संस्कृति में लगातार हमले हुए। मुस्लिम आक्रांताओं के  कारण हमारी बहनों, बेटियों और माताओं का आत्मबल व विश्वाश ख़तम होता गया क्यों की हम उन्हें सुरक्षा प्रदान नहीं कर सके।
       
              देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में साथ लड़ने वाला मुस्लिम समाज अंत में धार्मिक आधार पर देश का विभाजन कराया। विभाजन के दौरान जो लूट, कतलेआम व बलात्कार हुए, जिसका प्रतिउत्तर देने के लिए हिन्दू गरीब तबका आगे आया और वह भी मुस्लिम उपद्रवियों को उसी की भाषा में जवाब दिया तब वह निम्न वर्गी हिन्दू समाज, उच्च वर्ग समाज के प्रति सम्मान की दृष्टि रखता था और वह मुस्लिम उपाद्रव का जवाब उच्च वर्ग के नेतृत्व में दिया था। धर्म के आधार राष्ट्र विभाजन के बाद भी हमारे तथाकथित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश से सारे मुस्लिम समुदाय को पाकिस्तान जाने से रोक दिया। इसमें बहुत सारे सच्चे राष्ट्रभक्त मुस्लिम भी थे परन्तु उपद्रवी मुस्लिम समाज की बहुलता था।

                            परन्तु पाकिस्तान विभाजन के दौरान बचा हुआ अपराधी व लुटेरा मुस्लिम वर्ग आज भी सरिया कानून व इस्लामिक देश की आकांक्षा रखे जनसंख्या विस्फोट कर रखा है ।स्वतंत्रता कें बाद हमारे तथाकथित नेताओं ने वोट की राजनीति से धार्मिक दंगे करवाए और जिसमें हिन्दू व मुस्लिम समुदाय के असमाजिक तत्वों ने खूब बड़ चड़  कर भाग लिए। लूट, आगजनी व बलात्कार किए। राजनैतिक व पुलिस का आश्रय मिला अपराधिक तत्वों को। आज वही सब अपराधी सभ्य समाज को सरदर्द बन गाए है और हमारी बहन बेटियों की अस्मिता व जीवन खतरे में हैं। 

                 देश की स्वतन्त्रता के ७२ वर्ष से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी आज हम "बनाना रिपब्लिक" हैं। भारत को राष्ट्र बनाना होगा । जब से देश स्वतंत्र हुआ हैं तब से लगातार सत्ता को हथियाना और चुनाव लडना राजनीत का पर्याय बन गया है। यहां तक कि तथाकथित बुधजीवी वर्ग भी  राजनीति को सत्ता का साधन मानता है जो कि वस्तुत उतना सही नहीं है। वस्तुत राजनीत देश की दशा और दिशा तय करने की अवधारणा है। 
                           
                  मैंने बहुत करीब से न्याय शाही व देश की पुलिस शाही को देख रहा हूं। विश्वाश करिए आप कभी भी राष्ट्र नहीं बन सकते, जब तक आप राजनीत व नागरिक दायित्वों को सही मायने में नहीं समझते और अपना दायित्व राष्ट्र निर्माण में  नहीं देते। अपराधी  कोई भी हो चाहे वह व्यक्ति, समाज, धर्म, व्यवस्था, कानून, न्याधीश,  राजा या आप स्वयं, किसी भी परिस्थिति में न्यायोचित नहीं है और वह सब मानवता, मनुष्य, परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए घातक है। हमे आवाज उठानी होगी और क्यों न उठाए यह हमारा देश। हमारी सुरक्षा की गारंटी सिर्फ हमारा राष्ट्र दे सकता है और राष्ट्र के निर्माण में मैं अपने आप को हमेशा तैयार रखता हूं और आप भी तैयार हो जाइए। विश्वाश कीजिए बस आवाज उठाने की जरूरत है ,  निजी और सार्वनिक जीवन में उस हर आत्याचर, अपराध, अवावस्थया के प्रति जो राष्ट्र के विरूद्ध है क्यों कि सिर्फ स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र ही हमारे जीवन व मूल्यों की रक्षा प्रदान कर सकता। जगिए और उठ खड़े होइए समाजिक और दैहिक सुरक्षा के लिए नहीं हो तो अपराधी समय और जगह बता कर नहीं आता। बलात्कारी हमारे बीच में ही है और इसके लिए सतर्क व जागरूक होना पड़ेगा। पुलिस व कानून जब तक में आप के पास पहुंचेगा तब तक में तो हमारी लंका लग जाएगी।

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