"कोरोंना भी परेशान है"
"कोरोंना भी परेशान है" संकट के दौर में एक जिम्मेदार शहरी कि प्रतिक्रया व उसमे निहित मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति , सामाजिक और मानवीय जिम्मेदारियों को निभाने कि ललक ही उस शहर को सभ्य, उन्नत व समर्थ बनाती हैं। किसी भी राष्ट्र का "मानव विकास सूचकांक" कि टेबल में उसकी उपस्थित क्रम ही उस राष्ट्र के नागरिकों की मानसिक, शैक्षणिक, आर्थिक व नागरिक दायित्वों के निर्वहन में उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जब राज्य समर्थ शहरियों द्वारा संचालित होता है तभी वह प्राकृतिक, सामाजिक व संवैधानिक न्याय प्रदान कर पाता है। राज्य की क्षमताओं की अग्नि परीक्षा विपत्ति काल में सरकार द्वारा जन- धन की समस्याओं के समाधान में परिलक्षित होता है। निश्चिंत मत बैठिए, देश कोरोना महामरी से ग्रसित है। सरकार अग्नि परीक्षा से गुजर रही है और अब राष्ट्र का इम्तिहान है। और दुनिया के स्वयंभू जो " प्रकृति" को धता बता कर, खुद को खुदा बना बैठे थे,...